बेवफा ज़िन्दगी



सोचा था ज़िन्दगी महबूब है मेरी,
इश्क कर बैठा दीवाने से |
तन्हाई से भर दिया मैखाने को,
और नशा हो गया खाली पैमाने से |

रूठा था अपने ही खुशी से,
डरता था मैं मुसकुराने से |
सासें चल रही थी गुम्नाम अंधेरो में,
और मरता था मैं दिल को बहलाने से |

ज़रुरत थी मुझे उस साए की,
जिसकी ख़ामोशी गूंजती थी मेरे अरमानो में |
चलती थी बनके मेरा हमसफ़र,
हर एक खौफनाक तूफानों में |

Comments

Anonymous said…
राहें और बनती रहती है मुसाफिर
अपना ही है साया.. कोई गैर नहीं
प्यार करो तूफानों से हस दो दोराहे पर भी
गमनशीं ही सही पर शराब नहीं रूठती मैखाने से

Popular Posts